क्राइम संवाददाता द्वारा
कोंटा :छत्तीसगढ़ में प्रत्याशी चुनाव के प्रचार में जुटे हुए हैं। इसके साथ -साथ प्रशासन भी मतदान संपन्न करवाने के लिए पूरी तरह जुते हुइ है। इस बीच नक्सलियों ने प्रेस नोट जारी करते हुए चुनाव का बहिष्कार तो किया ही है। साथ ही कोंटा विधानसभा के प्रत्याशियों पर गंभीर आरोप भी लगाए हैं। नक्सलियों ने कांग्रेस प्रत्याशी कवासी लखमा और भाजपा उम्मीदवार सोयम मुका पर आरोप लगाए हैं। नक्सली संगठन की दक्षिण बस्तर डिवीजनल कमेटी की सचिव गंगा ने प्रेस नोट जारी करते हुए चुनाव का बहिष्कार करने का ऐलान किया है। इसे लेकर नक्सलियों ने कई जगहों पर बैनर-पर्चे भी लगाए हैं। अब मतदान से महज एक हफ्ते पहले ही कोंटा सीट पर खड़े भाजपा व कांग्रेस के उम्मीदवारों के खिलाफ आरोपों की झड़ी लगा दी है।
महिला नक्सली नेता गंगा ने आबकारी मंत्री और कांग्रेस प्रत्याशी लखमा व भाजपा प्रत्याशी मुका को आदिवासियों का हत्यारा बताया है। गंगा ने कहा कि जेल में बंद निर्दोष आदिवासियों की रिहाई करने का वादा करने वाली कांग्रेस ने सत्ता पाकर अपने वादों से मुकर गई और झूठे मामलों में फंसाकर निर्दोष आदिवासियों को जेल भेजने का सिलसिला जारी रखा। गंगा ने दावा किया है कि जेलों में बंद 125 निर्दोष आदिवासियों को सबूतों के अभाव में न्यायालय ने दोषमुक्त कर दिया है। आबकारी मंत्री लखमा पर आरोप लगाते हुए गंगा ने कहा कि मंत्री बनने के बाद सरकारी कार्यों में कमीशन लेकर उन्होंने करोड़ों की कमाई की है। वहीं भाजपा प्रत्याशी मुका पर सलवा जुडुम के दौरान आदिवासियों की हत्या, गांवों में आगजनी, घरों में लूटपाट और निर्दोष ग्रामीणों की गिरफ्तारी करवाने का आरोप लगाया है। इसके साथ ही जारी प्रेस नोट में गंगा ने कहा है कि छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार और मंत्री कवासी लखमा पिछले विधानसभा चुनाव में किए गए वादों को निभाने के बजाय केंद्र की मोदी सरकार के नक़्शे पर चल रही है। इस बात को लेकर समूचे इलाके में दहशत का माहोल है !ऐसे प्रशासन भी मतदान संपन्न करने के लिए कमर कस लिया है
दूसरी तरफ विधानसभा चुनाव के पहले चरण में बस्तर की सभी 12 सीटों समेत 20 सीटों पर पहले चरण में 7 नवंबर को मतदान होंगे। इधर नक्सलियों के चुनाव बहिष्कार के ऐलान का असर कोंटा विधानसभा क्षेत्र में देखने को मिल रहा है। सुदूर इलाके में कार्यकर्ता प्रचार करने से घबरा रहें है इस के साथ -साथ प्रत्याशी भी सुदूर इलाकों तक पहुंचने से कतरा रहे हैं। इस वीआईपी सीट पर प्रत्याशियों का चुनावी अभियान सिर्फ मुख्य सड़कों के किनारे और सुरक्षा बल के कैंपों के आस-पास बसे गांवों में जारहे है । इधर चुनावी माहौल सामान्य रूप से सुकमा, छिंदगढ़, कोंटा व दोरनापाल क्षेत्र के मुख्य इलाकों में ही देखने को मिल रहा है। ऐसे इस इलाके में कस्बाई से सड़क से जुड़े हुए हैं। ऐसे में साधारण शब्दों में ये कहा जा सकता है कि जिले की बड़ी बस्तियों में, जहां बड़ी संख्या में लोग रहते हैं, वहीं चुनाव प्रचार चल रहा है। चुनाव का प्रचार, चुनावी शोरगुल, झंडे-बैनर पोस्टर भी इन्हीं इलाकों में लगे नजर आ रहे हैं। वहीं राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं का फोकस भी इन्हीं जगहों पर है। जिले के अंदरूनी इलाकों में अभी तक प्रचार शुरू नहीं हो सका है। ऐसे में ये आशंका भी जताई जा रही है कि मतदान तक यहां प्रचार जोर नहीं पकड़ पाएगा। मुख्य सड़क छोड़कर अंदरूनी इलाकों में देखने पर ये सहजता से दिखने लगता है कि चुनावी शोर भी कमजोर होता चला जा रहा है। दोरनापाल से जगरगुंडा वाले इलाके में सड़क पर मौजूद गांवों में गिनती के बैनर-पोस्टर दिख रहे हैं। वहीं अंदरूनी गांवों में न तो झंडे दिख रहे और न ही बैनर। सुरक्षा बलों के कैंपों के आस-पास मौजूद गांवों में इक्का-दुक्का जगहों पर राजनीतिक दलों के झंडे देखने को मिल रहे हैं, वहीं कुछ जगहों पर निर्दलीय प्रत्याशी के बैनर भी देखे गए हैं। कोंटा विधानसभा के अंदरूनी किसी भी गांव में किसी भी प्रकार का चुनावी शोर देखने को नहीं मिल रहा है। माना जा रहा है कि नक्सलियों के चुनाव बहिष्कार का अघोषित रूप से बड़ा असरहुआ है। लोग चुनावी प्रचार-प्रसार से खुद को दूर रख रहे हैं। इस गांव के एक युवक ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि गांव के सारे लोग चुनाव के प्रचार में हिस्सा नहीं ले रहे हैं। चूंकि ये गांव सड़क से लगा हुआ है और यहां पुलिस कैंप भी है। ऐसे में यहां थोड़ा-बहुत माहौल दिख रहा है। जबकि जगरगुंडा से 5 से 10 किमी दूर बसे गांवों में तो चुनावी शोरगुल गायब है। इधर धुरनक्सल प्रभावित इलाकों में प्रत्याशियों के प्रचार से कतराने को लेकर अब तक कोई घोषित बयान नहीं आया है, लेकिन इस बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मनीष कुंजाम सिर्फ उन्हीं गांवों व इलाकों तक पहुंच रहे हैं, जो सीधे सड़क से जुड़े हुए हैं। इन गांवों में प्रत्याशियों ने कुछ सभाएं व नुक्कड़ सभाएं की हैं। इधर कोंटा विधानसभा में इस बार 36 मतदान केंद्रों को शिफ्ट किया गया है। शिफ्टिंग के पीछे का कारण मतदान केंद्रों का अतिसंवेदनशील होना बताया जा रहा है। जिन मतदान केंद्रों को शिफ्ट किया गया है, वहां वोटिंग का प्रतिशत बेहद कम होने की आशंका बनी हुई है। लेकिन प्रशासन ने इन स्थानों पर शिफ्टिंग जैसे काम करवाया है, ताकि वोटिंग आसानी से हो सके और लोग निर्भिक होकर मतदान कर सकें। इस समय प्रशासन की चुनौती बढ़ गई है